Supreme Court Decision On Check Bounce : आज के डिजिटल जमाने में सबसे ज्यादा लोग ट्रांजैक्शन अपने मोबाइल से ही कर लेते हैं। लेकिन जब भी बड़े कैश की लेनदेन की बात आती है तो चेक से ही पेमेंट करना लोग ठीक समझते हैं। जैसे-जैसे आज के आधुनिक युग में चेक का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे चेक बाउंस के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। लगातार चेक बाउंस के मामले Supreme Court तक पहुंच रहा है। Check Bounce Case एक बड़ा समस्या है जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक महत्वपूर्ण फैसला भी सुनाया गया है और बताया गया है कि चेक बाउंस होने पर कौन से लोग दोषी होंगे।
Supreme Court Decision On Check Bounce : चेक बाउंस मामला में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला।
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से चेक बाउंस होने पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के तरफ से स्पष्ट किया गया है कि चेक बाउंस के लिए केवल इसलिए इसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। क्योंकि वह व्यक्ति उसे फॉर्म में पार्टनर था। और लोन के लिए गारंटी भी बना था। Supreme Court के तरफ से कहा गया कि एनआई अधिनियम Act के धारा 141 के तहत किसी भी व्यक्ति पर केवल इसलिए कार्यवाही नहीं किया जा सकता है क्योंकि साझेदारी अधिनियम के तहत दायित्व भागीदारी पर पड़ता है।
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस संजीव खन्ना की खंडपीठ की तरफ से यह कहा गया कि जब तक कोई भी कंपनी या फिर फर्म अपराध नहीं करती है तब तक धारा 141 के तहत जवाब दे ही तय नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के तरफ से कहा गया कि जब तक कंपनी या फिर फॉर्म मुख्य आरोपी के रूप में अपराध नहीं किया है तब तक उसे व्यक्ति को उत्तरदाई नहीं होगा और उन्हें प्रतिपक्षी की रूप से उतरदाई नहीं ठहराया जाएगा।
अब तक कोर्ट में 34 लाख से ज्यादा है चेक बाउंस के मामले
सुप्रीम कोर्ट के तरफ से एक फॉर्म द्वारा जारी किए गए चेक बाउंस होने पर अपील करता कि दोषी ठहराते हुए चुनौती देने वाली एक याचिका पर फैसला कर रही थी। जिसमें वह एक भागीदार था। चेक बाउंस पर किसी अन्य साथी द्वारा साइन किए गए थे। शिकायत में फर्म को आरोपी नहीं बताया गया। आपको बता दे की चेक बाउंस एक बहुत बड़ी समस्या है और देश के अदालत में 34 लाख से ज्यादा कैसे अभी भी लंबित है। जिसमें से 7.47 चेक बाउंस के मामले तो केवल पिछले पांच महीने में देखने को मिले हैं।
आपको पता होना चाहिए कि चेक बाउंस होने पर एक अपराध माना जाता है। चेक बाउंस नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 के अनुसार चेक बाउंस होने पर व्यक्ति पर केस चलाया जा सकता है। उसे 2 साल तक जेल और चक में भारी राशि को दुगना जुर्माना करके देना होगा। हालांकि यह उसी स्थिति में होता है तब चेक देने वाले के अकाउंट में पर्याप्त बैलेंस न होने पर और बैंक चेक को दिशा ओनर कर दें।
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चेक बाउंस होने पर होती है कार्यवाई।
आपको बता दे की चेक दिशा ओनर होते ही भुगतान करता पर मुकदमा चला दिया जाता है। चेक बाउंस होने पर बैंक के तरफ से पहले लेनदार को एक रसीद दिया जाता है जिसके बाद चेक बाउंस होने के कारण बताया जाता है। इसके बाद लेनदार को 30 दिन के अंदर देनदारी को नोटिस भेजा जाता है।
अगर नोटिस के 15 दिन के अंदर दिलदार के तरफ से कोई जवाब नहीं आता है तो चेक लेने वाले मजिस्ट्रेट की तरफ से अदालत में नोटिस में 15 दिन गुजरने की तारीख से 1 महीने के अंदर शिकायत दे सकता है। वहीं अगर इसके बाद भी आपको रकम का भुगतान नहीं किया जाता है तो चेक देने वाले के खिलाफ केस किया जा सकता है। नेवीगेशन इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत चेक का बाउंस होना एक दंडनीय अपराध है और इसके अलावा 2 साल की भी सजा और जुर्माना दोनों का प्रावधान रखा गया है।
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