CIBIL Score : जब आप बैंक से लोन लेते हैं और EMI नहीं भरते हैं तो आपका सिविल स्कोर खराब हो जाता है। बैंक का लोन नहीं भरने के अलावा अगर कोई ऐसे व्यक्ति का आप ग्राइंडर बन जाते हैं जो लोन का पैसा नहीं भरता है तब पर भी आपका सिविल स्कोर खराब होता है। लोन की आवश्यकता होती है तो खराब सिविल स्कोर के कारण बैंक आपको लोन नहीं देता है। कई बार ऐसा होता है कि लोग मजबूरी के कारण लोन नहीं चुका पाते हैं ऐसे में हाई कोर्ट के तरफ से कम फैसला लोगों के हित में सुनाया गया है।
High Court Decision : खराब सिविल स्कोर पर हाई कोर्ट का बड़ा फैसला।
खराब और गंदा CIBIL Score के वजह से बैंक लोन नहीं देता है तो इस मामले में हाई कोर्ट की तरफ से महत्वपूर्ण फैसला दिया गया है। हाई कोर्ट की तरफ से एक टिप्पणी में कहा गया कि खराब सिविल स्कोर होने के बावजूद भी बैंक के किसी के लोन का आवेदन रद्द नहीं कर सकता है। बैंकों को कल फटकार लगाते हुए जस्टिस पीवी कुंहीकृष्णन ने शिक्षा ऋण के लिए आवेदन पर विचार करते हुए बैंकों में मानवीय दृष्टिकोण अपनाने के लिए निर्देश दिए हैं।
High Court ने छात्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहीं की छात्र कल के राष्ट्र के निर्माता है और उनका भविष्य देश के नेतृत्व में के लिए है। ऐसे में अगर किसी छात्र का सिबिल स्कोर कम है तो शिक्षा ऋण के लिए आवेदन किया हुआ है तो मेरा मानना है कि वैसे छात्र को शिक्षा ऋण आवेदन को बैंक को स्वीकार करना चाहिए ना कि आवेदन अस्वीकार करना चाहिए।
High Court में वकील ने दिया यह तर्क
लोन के इस मामले में याचिका करता जो एक स्टूडेंट है। इन्होंने दो कर्ज ले रखे थे। जिनमें से एक ऋण का 16000 अभी भी बाकी है। बैंक ने दूसरे रन को बट्टा खाता में डाल दिया था। इसके बाद याचिका करता का सिविल स्कोर खराब हो गया। प्याज का करता के वकील ने हाईकोर्ट में कहा कि जब तक की राशि तुरंत प्राप्त नहीं हो जाती है तब तक की याचिकाकर्ता बड़ी मुश्किल में पड़ जाएगा।
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रणब एस.आर. बनाम शाखा प्रबंधक और अन्य 2020 का उल्लेख किया गया है। जिसमें से न्यायालय के तरफ से यह माना गया था कि एक छात्रा के माता-पिता का असंतोष जनक क्रेडिट स्कोर (CIBIL Score) शिक्षा ऋण आशीर्वाद करने का आधार नहीं हो सकता है। क्योंकि छात्र की शिक्षा के बाद ही किसी भी विद्यार्थी को ऋण अदायगी का क्षमता योजना के मुताबिक निर्णायक कारक होना चाहिए।
वकील की तरफ से यह भी तर्क दिया गया की याचिका करता कोई एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के तरफ से नौकरी का प्रस्ताव मिला है और इस तरह वह पूरी कर्ज राशि चुकाने में सक्षम हो सकता है। इस पर प्रतिवादी पक्ष के वकील के तरफ से दर्द के दिया गया कि इस मामले में अंतरिम आदेश देना, याचिका करता द्वारा मांगी गई राहत के मुताबिक भारतीय बैंक संघ और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्देशित योजना के खिलाफ होगा। वकील की तरफ से आगे यह भी कहा गया कि खास सूचना कंपनी अधिनियम 2005 (Credit Information Companies Act l, 2005) और शाखा सूचना कंपनी नियम 2006 और भारतीय स्टेट बैंक द्वारा जारी परिपत्र वर्तमान जाज का करता की स्थिति में लोन की राशि देने पर रोक लगाते हैं।
हाई कोर्ट की तरफ से वास्तविक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और इस तथ्य पर गौर करते हुए याचिका करता ने ओमान में नौकरी प्राप्त कर लिया है कहा गया की सुविधाओं का संतुलन याचना करता के पक्ष में होगा और शिक्षा का कर्ज के लिए आवेदन केवल कम सिविल स्कोर के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है।
CIBIL Score को लेकर RBI ने बनाए है 5 नियम, सभी को जानना है जरूरी।
- भारतीय रिजर्व बैंक के तरफ से सभी क्रेडिट इनफॉरमेशन कंपनी की तरफ से कहा गया कि जब भी कोई बैंक या फिर एनबीएफसी किसी भी ग्राहक को क्रेडिट स्कोर (CIBIL Score) चेक करता है तो उसे ग्राहक को उसकी जानकारी भेजो जाना चाहिए। यह जानकारी एसएमएस या फिर ईमेल के माध्यम से ग्राहकों को देना चाहिए।
- आरबीआई की तरफ से कहा गया कि किसी भी ग्राहक की किसी रिक्वेस्ट को रिजेक्ट किया जाता है तो उसकी वजह बताना चाहिए जिससे ग्राहक को यह समझने में आसानी होगा की किस वजह से उसकी रिक्वेस्ट को रिजेक्ट किया गया है।
- केंद्रीय बैंक की तरफ से क्रेडिट कंपनी को साल में एक बार फ्री फुल क्रेडिट स्कोर की जानकारी ग्राहकों को देना जाना चाहिए। इसके लिए क्रेडिट कंपनी को अपनी वेबसाइट पर लिंक डिस्प्ले करना होगा जिससे कि ग्राहकों को आसानी से क्रेडिट रिपोर्ट को चेक करने में सुविधा हो।
- रिजर्व बैंक के अनुसार अगर किसी भी ग्राहक का डिफॉल्ट होने वाला है तो वह डिफॉल्ट की रिपोर्ट सबसे पहले उसे ग्राहक के पास बताना जरूरी है। लोन देने वाली संस्थाएं एसएमएस या फिर ईमेल के माध्यम से ग्राहकों की इसकी जानकारी दे सकते हैं। इसके अलावा बैंक लोन बांटने वाली कंपनी नूडल अफसर रखें। नूडल अक्सर ग्राहकों की क्रेडिट स्कोर से जुड़ी दिखतों को सुलझाने में मदद करता है।
- अगर क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनी 30 दिन के अंदर-अंदर ग्राहक का शिकायत का समाधान नहीं कर पता है तो उसे हर रोज ₹100 के हिसाब से जुर्माना चुकाना होगा। लोन बढ़ाने वाली संस्था को 21 और क्रिएटिव ब्यूरो को 9 दिन का समय मिलता है। 21 दिन में बैंक ने क्रेडिट ब्यूरो को नहीं बताया तो बैंक हार जाना देता है वहीं बैंक के तरफ से सूचना के 9 दिन के बाद भी शिकायत का निपटारा नहीं होता है तो क्रेडिट ब्यूरो को हर्जाना देना पड़ता है।